वास्को डी गामा 1498 में भारत आए और इसके 12 वर्षों के भीतर पुर्तगालियों ने गोवा पर कब्ज़ा जमा लिया.
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से शुरू हुआ पुर्तगाली शासन गोवा के लोगों को 451 सालों तक झेलना पड़ा. 1961 में 19 दिसंबर को उन्हें आज़ादी मिली यानी भारत के आज़ाद होने के करीब
साढ़े 14 साल बाद.आज़ादी के लिए गोवा के संघर्ष को मानो भुला दिया गया है. गोवा, दमन और दीव के भारत में शामिल होने के पीछे अनेक लोगों की भूमिका थी जिनके बारे में लोगों के शायद ही पता हो.
भारतीय सेना के ऑपरेशन विजय के 36 घंटों के भीतर पुर्तगाली जनरल मैनुएल एंटोनियो वसालो ए सिल्वा ने "आत्मसमर्पण" के दस्तावेज़ पर दस्तख़त कर दिए, लेकिन ऑपरेशन विजय इस लड़ाई का अंतिम पड़ाव था. आज़ादी की अलख गोवा में डॉक्टर राम मनोहर लोहिया ने 1946 की गर्मियों में जलाई थी.
डॉक्टर लोहिया अपने मित्र डॉक्टर जूलियाओ मेनेज़ेस के निमंत्रण पर गोवा गए थे. लोहिया गोवा के असोलना में डॉ. मेनेज़ेस के घर पर रुके, जहां उन्हें पता चला कि पुर्तगालियों ने किसी भी तरह की सार्वजनिक सभा पर रोक लगा रखी है.
ओमप्रकाश दीपक और अरविंद मोहन की किताब 'लोहिया एक जीवनी' में गोवा में लोहिया के संघर्ष के बारे में इस तरह लिखा गया है, "उनका इरादा तो बीमार शरीर को आराम देने का था, लेकिन गोवा जाकर उन्होंने देखा कि पुर्तगाली शासन, ब्रितानियों से भी अधिक वहशी है. लोगों के किसी भी तरह के नागरिक अधिकार नहीं थे. डॉक्टर लोहिया ने 200 लोगों को जमा करके एक बैठक की, जिसमें तय किया गया कि नागरिक अधिकारों के लिए आंदोलन छेड़ा जाए."
18 जून 1946 को बीमार राम मनोहर लोहिया ने पुर्तगाली प्रतिबंध को पहली बार चुनौती दी. तेज़ बारिश के बावजूद उन्होंने पहली बार एक जनसभा को संबोधित किया, जिसमें उन्होंने पुर्तगाली दमन के विरोध में आवाज़ उठाई. उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया और मड़गांव की जेल में रखा गया.
महात्मा गांधी ने 'हरिजन' में लेख लिखकर पुर्तगाली सरकार के दमन की कड़ी आलोचना की और लोहिया की गिरफ़्तारी पर उन्होंने सख़्त बयान दिया, जिसके बाद पुर्तगालियों ने माहौल गर्माता देखकर लोहिया को गोवा की सीमा से बाहर ले जाकर छोड़ दिया.
रिहाई के बाद लोहिया के गोवा में प्रवेश पर पांच साल का प्रतिबंध लगा दिया गया, लेकिन वे अपना काम कर चुके थे, पुर्तगाली दमन से परेशान गोवा के हिंदुओं और कैथोलिक ईसाइयों ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से प्रेरणा ली और ख़ुद को संगठित करना शुरू किया.
गोवा से पुर्तगालियों को हटाने के काम में एक क्रांतिकारी दल सक्रिय था, उसका नाम था- आज़ाद गोमांतक दल. विश्वनाथ लवांडे, नारायण हरि नाईक, दत्तात्रेय देशपांडे और प्रभाकर सिनारी ने इसकी स्थापना की थी.
इनमें से कई लोगों को पुर्तगालियों ने गिरफ़्तार करके लंबी सज़ा सुनाई और इनमें से कुछ लोगों को तो अफ्ऱीकी देश अंगोला की जेल में रखा गया. विश्वनाथ लवांडे और प्रभाकर सिनारी जेल से भागने में कामयाब रहे और लंबे समय तक क्रांतिकारी आंदोलन चलाते रहे.